के कूं च्याला, निर्बूधि राजक काथे काथ

A Space for Kumaoni Stories and Way of Life

Friday, March 12, 2010

पूर्बज

कई साल मैं सोया
बूढ़े बरगद के तले
उसकी जड़ें जमती रहीं
भीतर मेरे
धीरे-धीरे
कई साल
बूढ़ा बरगद जगाता रहा मुझे
आता रहा औचक सपनों में
उसकी अँधेरी खोहों से आती
गूंजक आवाजें
उन पूर्बजों की
जिन्होंने बांधे थे धागे
गोलाकार
बूढ़े बरगद के तने पर
तब पूर्बज भी जवान थे
और बरगद भी
फिर मरते रहे पूर्बज
उनके बांधे धागे
तुड़-मुड कर बनती गयीं जटायें
और बूढा होता गया बरगद
अब भी उसकी खोहों से
आती हैं गूंजक आवाजें
दूर पहाड़ी के मंदिर की
घंटियों सी
इन्हीं खोहों में पलते
बच्चे चिड़ियों के
पीढियां दर पीढियां
पूर्बजों द्वारा किये गए
पिंडदान के चावलों पर
बड़ी हो उडती रहतीं हैं
कई दिशाओं में
कुछ चली जातीं हैं दूर
खो जातीं हैं अजनबी आकाश के
स्याह नीलेपन में
कुछ दिग्भ्रमित हो
थक-हार लौट आतीं हैं
बूढ़े बरगद के कोटरों में
कभी-कभी
उकडू गर्दन निकाल
झांक लेती हैं
डरी सी बाहर के
बदलाव-फैलाव से
बिषाक्त हवा से
या हर साल
मनमानी दिशा बदलती
नदी की धार से
जिसके कटाव से खो रहा है
धीरे-धीरे
बूढा बरगद अपनी जडें
और जमीन अपना मातृत्व
रेत-कंकड़ भरी धरती में
नहीं उगता है अन्न
और चिंतित हैं बच्चे चिड़ियों के
कि नहीं करता
कोई आजकल पिंडदान
पूर्बजों की लिए

Monday, March 8, 2010

कुमाउनी कहानी ३: चल तुमड़ी बाटों बाट

एक गों में एक बूड़ी रुनेर भे. ऊ बुडियेक एक चेली भे. ऊ चेली ठुली है गयी तो बुडियेल वीक ब्या करी दी. चेलीक सराष शहर में भोय. चेली ब्या बाद बूड़ी बिचारि ऐकले रे गई. दिन इथां-उथां काम करी बे बीते दिनेर भई और ब्याल के उदासी जानेर भई. सोच्नेर भई कि क्वे और नानतिन हुना या चेली नजदीक के हुनि तो ऐकले बैठ बे रवाट नि खाण पड़न. के ले नि हुनो कब्हत चेली कं भेटी ऊनी. चेली ले बूड़ी थें कुनेर भई, 'ईजा, तू यां किले नि ऐ जनि? के करछे वां ऐकले-ऐकले? के धर राखो वां?' बूड़ी कुनेर भई, 'ना चेली घर कसी छोडू? और फिर तू चेली भई, त्यार वां रूण लागलो तो मेंस कोल ' को मरो तो बुडियक, तेले चेली वां अड्ड मारी हेलो. में यां ठीक छुं. नरे तेरी मस्त लागे पे के करू?'
'पे मुणि दिना लिजी ए जा. चेली वां नि जे के जान'. चेली कोय.
'तस तू ठीक कूण रेछे, ऊँहू म्यार मन ले है रो. पे के करू बाट में जंगल पडूं. शेर, भालू, स्याव, कुकुरा कतू किस्मा जानवर भाय. मिकणि ज्योन जे के रहूण द्याल, खे द्याल.'
'बात तू ठीक कुणछे. जंगली जान्वारूं डर तो भोय. रूक मैं के तरकीब सोच्नु'. चेलिल आपु मै थें कोय.

फिर एक दिन चेलिल आपुण ईजा लिजी जबाब भेज. 'ईजा मील एक तरकीब सोची राखी. तु यस कर कि तु बाट लाग जा. अगर बाट में तिकें जंगली जानवर मिलला, तु उनुह कये कि अल्ले मिकें खे बेर के करला. मी पर हाड़े-हाड़ छन. मी आपुण चेली वां जाणयु. वां बे खे पी बेर मोटे बेर ऊल, तब मीकें खाया. खायी जे लागली...ऐल खे बेर के करला.'
बुडियेल चेली लिजी जबाब भेज, 'पे चेली, मी वापिस कसी ऊल?'
'ईजा, मील वीक इंतजाम ले सोच राखो. बस तू बाट लाग जा.'

बुडीयेल रात के मुणि खजूर पकाय, थ्वाड़ गुल्पापरी धुस बनाय और रत्ते ब्याण बुडी चेली घर हूँ बाट लाग गे. मन में बुडियक डर ले लाग रॉय. पे चेलिल के राख की के नि होल अगर तू जस मेंल बते राखो उसे करली तो.
जंगल में थ्वाड़ दूर जै सकी तो बूढी कण एक स्याव मिल गोय.
'बुडिया, बुडिया, कां जाणेछे - मैं तिकें खानू' स्यावल कोय.
'स्व्यावा मिकें के खांछे, मी पर हाडे-हाड छन. थ्वाड़ दिन रूक जा. मी आपुण चेली घर जाँण रयुं. वांबे खे-पी बेर, मोटे बेर उंल, पे खये - खायी जसी लागेल.' बुडीयेल कोय.
स्यावल सोच बुडी ठीक कुणे, येपर के छे न्हे.
'पे बुडिया ध्वाक तो नि देली'
' ध्वाक कसी दयूल स्व्यावा? घर हूँ तो ये बाट ऊँल'
'पे बुडिया याद धरिये. मी खूल तिकें.'
बुडी अघिल बाट लाग गे. यो घडी जान बची. बुडीयेल सोच.
थ्वाड़ दूर और गयी तो एक भालू मिल गोय. वील जोरल कोय:
'बुडिया, बुडिया, कां जाणेछे - मैं तिकें खानू'
बुडि कणी थरथराट पड़ गोय सामणी में भालू देख बेर. फिर चेली बात याद ऐ गे और वील कोय:
'भालजू भालजू मिकें के खांछा, मी पर हाडे-हाड छन. थ्वाड़ दिन रूक जाओ. मी आपुण चेली घर जाँण रयुं. वांबे खे-पी बेर मोटे बेर उंल पे खाया - खायी जसी लागेल.'
भालुल सोच बुडी ठीक कुणे, येपर के छे न्हे.
'पे बुडिया ध्वाक तो नि देली'
' ध्वाक कसी दयूल भालजू ? घर हूँ तो ये बाट ऊँल'
'पे बुडिया याद धरिये. मी खूल तिकें.' भालुल कोय.
बूढी फिर लाग बाट अघिल. जान जाने थ्वाड़ दूर और गयी तो एक शेर मिल गोय. वील मार दहाड़:
'कां जाणेछे बुढ़िया. यां आ मी तिकें खानू'.
बुडीयाक डरल यस लगलगाट पड़ की वीक मुख बे के आवाजे नि निकली. फिर जसी तसि चेली बात याद करी बे वील कोय:
'शेर राजज्यू मिकें के खांछा, मी पर हाडे-हाड छन. थ्वाड़ दिन रूक जाओ. मी आपुण चेली घर जाँण रयुं. वांबे खे-पी बेर मोटे बेर उंल पे खाया - खायी जसी लागेल.'
शेरल सोच बुडी ठीक कुणे, येपर के छे न्हे.
'पे बुडिया ध्वाक तो नि देली'
' ध्वाक कसी दयूल शेर राजज्यू ? घर हूँ तो ये बाट ऊँल'
'पे बुडिया याद धरिये. मी खूल तिकें. मी यो जंगलक राज छुं ' शेरल कोय.
'शेर राजज्यू, तुमुकू ध्वाक दयूलो पे !'
'ठीक छु बुढ़िया जा पे' शेरल कोय

बुडीयेल सरपट दोड़ काटि और चेली घर पूज बेर सांस ल्हि.
चेलील कोय 'ईजा भोल करो त्विल, ऐ गे छे'.
'चेली ऐ गयुं, जूँल कसी? मिकें खाहूँ तीन-तीन बैठ रयिं बाट में,
'फिकर नि कर ईजा. आरामल खा-पे, त्यर जाणो इंतजाम मी करुल.'
बूढी मस्त दिन चेली वां रई. चेलिल खूब खवाय पिवाय और बूढी मोटे बेर लाल है गेयी. एक दिन वील आपुण चेली हूँ कोय:
'चेली, त्यार वां रून रूने मस्ते दिन है गयीं. आब मी घर हूँ जानू. त्वील म्यर जाणोक के इंतजाम करी राखछो?'
'होय ईजा पक्क इंतजाम करी राखों' चेलिल ईजकं ढ्योस दिलाय.
'पे चेली मैं भोव जूँल'
'ठीक छु ईजा' चेलील कोय.

रत्ते पर चेलील बूढीकण एक तुमड़ी दिखाय. तुमड़ी भितेरबे खोकई भई और ठीक बूढीयकै बराबर भई. आंखां जाग थै द्वि छेद बणाई भाय. 'ईजा, तू य तुमड़ी भितेर लुकी जा और बाट लाग जा. बाट में जो ले मिललो और त्यार बार में पूछलो तो तू कए - चल तुमड़ी बाटों बाट, मैं के जाणू बूढीये बात - और हिटते रये. और यो खुश्यानी पुड़ी ले धर ल्हे. जरुरत पडली तो जो जानवर तिकें खाहूँ आल वीक आखां में छलके दिए.'
'जस कूँछे पे चेली' बुडीयेल कोय. मने मन उंके डर ले लागी रई.

बूढी तुमड़ी भितेर लूकि बेर घर हूँ बाट लागी गेयी. बाट में पैलि शेर मिल. वील कोय:
'ओ तुमड़ी कांहूँ बाट लाग रो छे? एक बूढी तो नि देखि त्वील बाट में? मस्ते दिन है गयीं चाई चाइये मिकें.'
बूढीकं डर तो मस्ते लाग रई पे चेली बात याद करी बेर वील कोय:
'चल तुमड़ी बाटों बाट, मै के जाणू बूढीये बात' और बूढी हिटते रई.
शेर तुमड़ीकें जान चै ऱोय, उकें के अंदाज नि आय.
बूढीकें खूब हिम्मत ऐ गे. चेली मेरी खूब होसियार छु. बूढीयल मने मन सोच.
थ्वाड़ देर बाद भालू मिल. भालुल ले कोय:
'ओ तुमड़ी कांहूँ बाट लाग रो छे? एक बूढी तो नि देखि त्वील बाट में? मस्ते दिन है गयीं चाई चाइये मिकें.'
बूढीकं आब भरोस है गोय और वील कोय:
'चल तुमड़ी बाटों बाट, मै के जाणू बूढीये बात' और बूढी हिटते रई.
भालू ले तुमड़ीकें जान चै ऱोय, उकें ले के अंदाज नि आय.
थ्वाड़ देर बाद स्याव मिल. वील ले कोय:
'ओ तुमड़ी कांहूँ बाट लाग रो छे? एक बूढी तो नि देखि त्वील बाट में? मस्ते दिन है गयीं चाई चाइये मिकें.'
बूढीयेल सोच आब स्याव कणी देख ल्यूल्ह भे, और वील कोय:
'चल तुमड़ी बाटों बाट, मै के जाणू बूढीये बात' और बूढी अघिल हूँ बाट लागण फेटि.
स्याव भय चालाक. वील सोच यार आज तक क्वे तुमड़ीकं हिटण नि देख, जरूर के चक्कर छु. और वील एक तिक्ख लाकड़ बूढीया समाणी धर दी. बूढी जसिके अघिल हूँ बढ़ी तो तिक्ख लाकड़ हूँ टकरे गे और तुमड़ी फट्ट फूटी गे.
' बूढीया, मैं समझ गोछी तेरी चालाकी. आब मैं तिकें खानू .'
'ठीक छु स्यावा, आब जब पकड़ी गोयुं तो खा पे. पे म्यार पास एक मसालदार पुड़ी छु. ये दगड़ मिले बेर खाले तो स्वाद आल.' बूढीयल कोय.
'ल्य़ा पे निकाल.' स्यावल कोय.
बूढीयल आपुण कमर में रोप्पी खुश्यानी पुड़ी निकली और छल्ल के खुश्यानी धुस स्यावाक आंखां में छलके दी. स्याव चिलाट पाडने भाज गोय और बूढी आपुण घर एई गे.

Tuesday, October 6, 2009

कुमाउनी कहानी २

एक गौं में एक काण रुनेर भय और एक कुकड़. गौं में क्वे उनर नाम नि जा्णनेर भाय. सब ओ काणा या ओ कुकडा कै बेर बात करनेर भाय. एक दिन काणल कुकड़ हूँ कोय, 'यार हमरी ले के जिंदगी नि भे. काणा, कुकडा ये सुणण भे हर बक्त.'
'ठीक बात कुणछा यार, बिलकुल भल नि लागन काणा, कुकडा सुणण हर बखत'
'मै तो सोचण रयुं की कें दूर न्हे जूं. पे के करूँ काण भय, ठीक के देखी नि सक्नेर भय'
'इच्छा तो मेरी ले ये छि, लेकिन मै ले कुकडा वील परेशान भय. हिटी नि सक्नेर भय'
'म्यार दिमाग में एक बात अई रे', काणल कोय, 'किले ने हम द्वि जाणी दगडे हिटू. एक काम करुल - तू देख सक्नेर भये, तू म्यार कानी में बैठ जाये और मिकें बाट बतेये. हिटण काम म्यार रोय.'
कुकड़ल कोय 'त बात ठीक छु, यां बे कैन दूर न्हे जूळ.'

और एक दिन काण और कुकुड़ बाट लाग गाय.
जाते जाते एक शहराक नजदीक पहुँच गाय. नजदीकै एक धार भय और धार पर काण और कुकुड़ पाणि पिंहे न्हे गाय. धार पर एक काव लै पाणि पिंहे आई भय, काव सिद्द राजा महल बै उंण लाग रोय राणीक हार उठे बेर. हार धारा माथ बे धरी बेर पाणि पिणय. वील काण और कुकुड़ कें उन देखो तो हार वें छोड़ बेर उडी गोय.
पाणी पीते पीते कुकुड़कि नजर हार पर पड़ी. वील काण थें कोय
'यार, धारा माथ बे एक हार पड़ी छु'
'कोस हार छु?' काणल पूछ.
'कीमती देखिणो, सुनक छु और हीर जवाहरात ले लागी छन'.
'के करण चें पे?' काणल कोय.
'मिके त के अंदाज नि उनय'.
'यार आब हमुंकू देखि रो, तो हमुल धर लीन्ह चें. गाव में पेरणी चीज़ छु. यस करनू तो हाराका द्वि हिस्स कर लिन्हू. एक हिस्स तू पैर ल्हे, एक कं मी पैर ल्युल्ह'. काणल सुझाय.
'ठीक छु पे, तसे करनु.'
कुकडल हारा द्वि हिस्स करी. एक वील काणा गावम खिति दी और एक हिस्स आफी पैर ल्ही. फिर अघिल बाट लाग गाय.

उथां राजा महल में हल्ल है रोय कि राणिक हार हरे गो. राजल सिपाई दोडे राख - हार चोर कं पकड़णा लिजी. काण और कुकड़ ले आपुण मस्त है बाट लाग राइ - हार गाव में पैर राख. एक जाग पर राजा द्वि सिपाई देखि गाय. द्विये घव्डान में सवार भाय और हाथां में बन्दूक भै. कुकड़ल सोच कि आब मरी गोयुं. द्विये सिपाय्निल पोजीशन ल्ही हाली - एक मली ठाड़ है गोय एक तली कै ठाड़ है गोय. काणल कोय, 'के बात ने, जस्से उं गोई चलाला तू म्यार ख्वार में कट्ट कै मार दिए और मैं झुप्प बैठ जूँल'. कुकड़ल उसे कर. जस्से सिपाय्निल गोई चलाई, कुकड़ल कट्ट कै काणाक ख्वार में ठोकी दी. काण झुप्प कै बैठ गोई. मली ठाड़ सिपाई गोली तली वालें कं लागी और तली वालेक गोई मली वाले कं लागी. द्विये सिपाई ठण्ड है गाय.
'यार, यों द्विये ठण्ड है गयीं'. कुकड़ल काण थें कोय
'तो ठीक भो' काणल कोय.
'यनर के करी जाओ?'
'यस करनू, यनरी वर्दी उतार बेर पैर लिन्हू. एक एक बन्दूक ले धरी लिन्हू. घव्डान कं ले ल्हिजानु. एक में तू बैठ जा और एक में मीके बैठे दे'. काणल कोय.
कुकड़ल उसे कर. अघिल जै बेर ऊँ एक उड्यार में आराम करण लाग गाय. काणल कुकड़ हूँ कोय, 'यार खाणक के इंतजाम हूँ?'
कुकड़ल कोय, 'देखनु पै'.
कुकड़ उड्यारक भैर ऐ बेर खाणा बाराम सोचण लाग. सोचते सोचते कुकड़क दिमाग में जलन मची गे. वील सोच, यार हार ले मील देख, सिपाई गोई चलुणी यो ले मील बताय, और यो काण हर चीज़ में आदु हिस्स ल्ही ल्हिणो. येक के इंतजाम करण पडोलो.

कुकड़क नजदीक पर एक स्याप देख. वील चट्ट उ स्याप मारि ल्ही और वी शिकार पके दी और कानाक थाईम धर दी. काणल जब खाण शुरू करो तो स्यापक शिकारा टुकुड चिफाव लाग. वील पुछ, 'यार त्वील के पके राखो, बड चिफव लाग्णों?' कुकड़क कोय, 'गडेरी साग छु, ये वील चिफव लागाणो. खे ल्हे.' काणक मन में सक है गोय. वील एक नानू नॉन टुकुड दातोंल तोड़ और उ समझ गोय की यो गडेरीक साग न्हें. बल्कि यो के चीजक सिकार छु. उकों आयो गुस्स और वील एक लात कुकडाक पूठ में मारि. 'साला के खावा रे यो?' कुकडाक पूठ में लातकी पीड है रई. मुणी पीड ठीक भयि तो उ ठाड़ भोय और चांछियो तो उ तोर तोर ठाड़ है रोय. काणक लातल वी कूबड़ ठीक है गोय. उथां काणक एक टुकुड स्यापोक सिकार खाईल आंखांक ज्योत वापिस ऐ गे.

द्विनूलै एक दुहरे कूँ अंग्वाव हाली और गों हूँ वापिस अई गाय. द्विये घव्डान में सवार भाय. हाथां में बन्दूक लै भई और गावन हार भाय. कुकुडक पूठ लै ठीक भय और काण लै देखि सक्नेर भय. ऊ दिना बाद गों में कैले उनुहूँ ओ काणा या ओ कुकडा नी कोय.

Monday, October 5, 2009

आब खा खुशिया खीर - कुमाउनी कहानी

भोत पैलिये बात छु. एक राज भोय. उ राजक एक नोकर भोय जै नाम खुषी भोय. खुषी भोते मुख लागी नोकर भोय. राजक कोय तो मान्नेर भोय लेकिन राज कण परेशान लै खूब करने भोय. राजका राणी लै भोत परेसान भय. कुनेर भाय, 'हो राज्जू, तोस मुख लगाई नौकर के घर राखो. तुम हमरी बात लै नि सुणना.' राज के नि कुनेर भय बस हँसी दिनेर भय. राणि मन ऐ मन खार खानेर भाय पै कर लै के सक्नेर भाय. राज राजै भय और खुषी मुख लागई नौकर भय.

एक दिन राज आपुण सरास हूँ जाण रोय. खुषी लै दगारे भोय. सरासा जब नजदीग पहुच गया तो राजल कोय, 'खुसिया, जा जै बेर बते दे की राज्जू उणी, खाणक भल इंतजाम कर दिया.'
'ठीक छु महाराज जानू' खुशियेल कोय और लाग गोय बाट.
राजल थ्वाड देर आराम कर और फिर उ ले हीटी दी.

'ओहो राज्जू एई गयीं, राज्जू एई गयीं'. राजा सरास मैं चहल पहल है गे. राज कं गोंठ बठाई गोय. हाल चाल पूछी गाय. फिर आइ खाणक बारी. राजा लिजी चोक बिछाय. काख पै खुशिया लिजी बोरियो टुकुड बिछाय. राजक मुखा सामणी कान्सेकी थाई धरी गेई और खुशियाक अघिल बे तिमिला पात बिछाई गाय. दिन भर पैदल हिटी बे राज्जू पस्त है राइ. भूखल लै कल्बलाट पढ़ी राय. सामणी रषयो में खांह लै भले पकाई देखीण रोय.
'खुशियल काम ठीक करो. सिंगल लै छन, आलू गुटुक लै छन, रैत लै देखिण रो. पूरी सास्जू तलण रयिं. गडेरी साग और खीर तो हुनाले.' राज्जू खुषी है गाय.

आब जब सासुल परोषण सुरु करो तो पैली तो राज्जू कं के अंदाजे नि आय. खुशिया अघिल बे पातों में तो सब ब्यंजन परोसी गाय पे राजा थाई में भट्टो पतोव जोव परोसी गोय. और सासुल कोय, 'राज्जू, हमुकं मालूम तो हई गो छि की तुम उण लाग रो छा. हमुले खणोको इंतजाम करी हाल्छी. फिर यो खुषी आ और येल को की राज्जू पेट ख़राब छु, दस्त लाग रयिं, के खै नि सकाळ. कुणोछि की पतव भट्टो जोव खाणे इछा छु. येक वील मिकें पैली भेज राखो. '

राज्जू के कुंछी. मन ऐ मन खुषी कण गाई दी बेर कशिके थाव्ड जोव खाय. खुषी काख कै बैठ बेर मौजल पूरी, आलू गुटुक, खीर सटकण रोय और बीच बीच में राजा थाई तरफ ले चैल्हीं रोय. 'साला खुशिया, ती कण लै बतुल भै. राणि ठीक कुनी की अति मुख लगे राखो.'

व्ही बाद आइ सितने बारी. चाख में राजक सितेणक इंतजाम करी गोय. और पली पली कै खुशियक सितेणक इंतजाम करी गोय. राज्जू फिर चक्कर खै गाय. राज्जू लिजिया बिछाई भे एक दरी और खुशिया लिजी बिछाई भय परावाक म्वोट गद्द. सास्जुल फिर कोय, 'त खुशियल को की राज्जुक पुठम पीड छु. घर में पतव बोरी में से रूनी. या ले एक दरी बिछे दिया कुनोछी.' राजेल खुशिया तरफ चाई, उ आपुण गद्द में लम्पसार हई रोय. 'हीट खुशिया तू घर,. पै देखुनु तिकें.' राजल मन ऐ मन फिर कोय.

रात भर राज कें नीन नि आइ. एक तरफ पेट में भूखल कुलबुलाट पड़ राय और दूसरी तरव बे पुठम चाखा ढुंग पिराण लाग राय. और जाड लै हूण लाग रोय. उथा खुशियाक निनाक खुराट पढ़ राय. राज बिचार के करछी. जसी तसी रात बिताई.

रत्ते पर जब जाणक बारी आई तो राजक सासुल खीरकी एक पोटोई पाड़ दी और कोय. 'पे राज्जू तुम यां आया और के खे पि ले नि सका. और के छु पै, यो मुणि खीर छु, घर जै बेर खै लिह्या.' सासुल गौहोत, भट्ट और रैसे दालक मुणि पोटोई पाड़ बेर एक कंटर सामानोक बढे दी, आपुण चेली राणि लिजी.
'चल खुशिया उठा कंटर.' राजल कोय.
'उठुनु महाराज.' खुशियल कोय.
और द्वि जाणी लाग गाय बाट वापिस राजक घर हूँ. राज कें लाग राइ खार.
'पै खुशिया कोस हई रोछी खान्हू बेई?' राजल पुछ.
'भोत भल हई रोछी महाराज, तुमार प्रसादल.'
'नीन लै भली आइ नैहैल खुशिया?'
'भोते भली महाराज, तुमार प्रसादल.' खुशिलय फिर कोय.
'हीट पै आब घर हीट'. राजल कोय.

मन ऐ मन राज सोचण लाग रोय की खुषी सालैंक जल्दी है जल्दी सबक सिखुण चै. ऊं एक भ्योव चढ़नाय. उत्ती कें एक ओडीयार लै भय. राज कें एक तरकीब सूझी. वील सोच की खुषी हुं कुनु की मिं थाकी गयुं और मायर खुट दबे दे. और जसिके मौक मिल्लो तो खुषी कें लात मारी दुंल. आफी पडोल भ्योव.

'खुशिया, पा उ ओडीयार देखेण रो छे. में थाकी गयुं. थ्वाड आराम करुल. तू म्यार खुट दबे दे.'
'जोस कुंछा महाराज.' खुशियल कोय.
ओडीयार में जै बेर राज लम्ब है गोई. खीरकि पोटई वील आपुण सिराण धर ली और खुषी राजक खुट दबूण
में लाग गोय. राज रात भर नि सीती भोय. झट वीक आख लागि गे. खुशियल देखो की राज से गो तो वील चट्ट राजा सिराणा तली बे खीर निकाली और खाण लाग गोय. कंटर वील त्यो्रछ करी बे राजा खुटान मांथ बे धर दि.

थ्वाड देर में राज कणी ध्यान आय की खुषी कें लात मारण छु. वील मारी लात और कोय, 'आब खा खुशिया खीर'.
राजकी लातल कंटर भ्योव घुरी गोय और खुषी जो काख पर बैठी बेर खीर खाणोछि, वील कोय,
'खाणयु महाराज तुमार प्रसादल.'

Monday, July 27, 2009

Few colours of Life - Childhood Imaginations

Indian media's portrayal of Australia

During last few months there have been a number of violent incidents against Indian students in Australia. There has been a strong reaction from Indian media. Check this link though the title has been changed by the editors -

http://www.eurekastreet.com.au/article.aspx?aeid=15392

Tuesday, June 23, 2009

Experimenting with Blogs


Feeling daunted by the new technologies for long, finally decided to give blogging a go! So far looks easy and simple.