के कूं च्याला, निर्बूधि राजक काथे काथ

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Monday, October 5, 2009

आब खा खुशिया खीर - कुमाउनी कहानी

भोत पैलिये बात छु. एक राज भोय. उ राजक एक नोकर भोय जै नाम खुषी भोय. खुषी भोते मुख लागी नोकर भोय. राजक कोय तो मान्नेर भोय लेकिन राज कण परेशान लै खूब करने भोय. राजका राणी लै भोत परेसान भय. कुनेर भाय, 'हो राज्जू, तोस मुख लगाई नौकर के घर राखो. तुम हमरी बात लै नि सुणना.' राज के नि कुनेर भय बस हँसी दिनेर भय. राणि मन ऐ मन खार खानेर भाय पै कर लै के सक्नेर भाय. राज राजै भय और खुषी मुख लागई नौकर भय.

एक दिन राज आपुण सरास हूँ जाण रोय. खुषी लै दगारे भोय. सरासा जब नजदीग पहुच गया तो राजल कोय, 'खुसिया, जा जै बेर बते दे की राज्जू उणी, खाणक भल इंतजाम कर दिया.'
'ठीक छु महाराज जानू' खुशियेल कोय और लाग गोय बाट.
राजल थ्वाड देर आराम कर और फिर उ ले हीटी दी.

'ओहो राज्जू एई गयीं, राज्जू एई गयीं'. राजा सरास मैं चहल पहल है गे. राज कं गोंठ बठाई गोय. हाल चाल पूछी गाय. फिर आइ खाणक बारी. राजा लिजी चोक बिछाय. काख पै खुशिया लिजी बोरियो टुकुड बिछाय. राजक मुखा सामणी कान्सेकी थाई धरी गेई और खुशियाक अघिल बे तिमिला पात बिछाई गाय. दिन भर पैदल हिटी बे राज्जू पस्त है राइ. भूखल लै कल्बलाट पढ़ी राय. सामणी रषयो में खांह लै भले पकाई देखीण रोय.
'खुशियल काम ठीक करो. सिंगल लै छन, आलू गुटुक लै छन, रैत लै देखिण रो. पूरी सास्जू तलण रयिं. गडेरी साग और खीर तो हुनाले.' राज्जू खुषी है गाय.

आब जब सासुल परोषण सुरु करो तो पैली तो राज्जू कं के अंदाजे नि आय. खुशिया अघिल बे पातों में तो सब ब्यंजन परोसी गाय पे राजा थाई में भट्टो पतोव जोव परोसी गोय. और सासुल कोय, 'राज्जू, हमुकं मालूम तो हई गो छि की तुम उण लाग रो छा. हमुले खणोको इंतजाम करी हाल्छी. फिर यो खुषी आ और येल को की राज्जू पेट ख़राब छु, दस्त लाग रयिं, के खै नि सकाळ. कुणोछि की पतव भट्टो जोव खाणे इछा छु. येक वील मिकें पैली भेज राखो. '

राज्जू के कुंछी. मन ऐ मन खुषी कण गाई दी बेर कशिके थाव्ड जोव खाय. खुषी काख कै बैठ बेर मौजल पूरी, आलू गुटुक, खीर सटकण रोय और बीच बीच में राजा थाई तरफ ले चैल्हीं रोय. 'साला खुशिया, ती कण लै बतुल भै. राणि ठीक कुनी की अति मुख लगे राखो.'

व्ही बाद आइ सितने बारी. चाख में राजक सितेणक इंतजाम करी गोय. और पली पली कै खुशियक सितेणक इंतजाम करी गोय. राज्जू फिर चक्कर खै गाय. राज्जू लिजिया बिछाई भे एक दरी और खुशिया लिजी बिछाई भय परावाक म्वोट गद्द. सास्जुल फिर कोय, 'त खुशियल को की राज्जुक पुठम पीड छु. घर में पतव बोरी में से रूनी. या ले एक दरी बिछे दिया कुनोछी.' राजेल खुशिया तरफ चाई, उ आपुण गद्द में लम्पसार हई रोय. 'हीट खुशिया तू घर,. पै देखुनु तिकें.' राजल मन ऐ मन फिर कोय.

रात भर राज कें नीन नि आइ. एक तरफ पेट में भूखल कुलबुलाट पड़ राय और दूसरी तरव बे पुठम चाखा ढुंग पिराण लाग राय. और जाड लै हूण लाग रोय. उथा खुशियाक निनाक खुराट पढ़ राय. राज बिचार के करछी. जसी तसी रात बिताई.

रत्ते पर जब जाणक बारी आई तो राजक सासुल खीरकी एक पोटोई पाड़ दी और कोय. 'पे राज्जू तुम यां आया और के खे पि ले नि सका. और के छु पै, यो मुणि खीर छु, घर जै बेर खै लिह्या.' सासुल गौहोत, भट्ट और रैसे दालक मुणि पोटोई पाड़ बेर एक कंटर सामानोक बढे दी, आपुण चेली राणि लिजी.
'चल खुशिया उठा कंटर.' राजल कोय.
'उठुनु महाराज.' खुशियल कोय.
और द्वि जाणी लाग गाय बाट वापिस राजक घर हूँ. राज कें लाग राइ खार.
'पै खुशिया कोस हई रोछी खान्हू बेई?' राजल पुछ.
'भोत भल हई रोछी महाराज, तुमार प्रसादल.'
'नीन लै भली आइ नैहैल खुशिया?'
'भोते भली महाराज, तुमार प्रसादल.' खुशिलय फिर कोय.
'हीट पै आब घर हीट'. राजल कोय.

मन ऐ मन राज सोचण लाग रोय की खुषी सालैंक जल्दी है जल्दी सबक सिखुण चै. ऊं एक भ्योव चढ़नाय. उत्ती कें एक ओडीयार लै भय. राज कें एक तरकीब सूझी. वील सोच की खुषी हुं कुनु की मिं थाकी गयुं और मायर खुट दबे दे. और जसिके मौक मिल्लो तो खुषी कें लात मारी दुंल. आफी पडोल भ्योव.

'खुशिया, पा उ ओडीयार देखेण रो छे. में थाकी गयुं. थ्वाड आराम करुल. तू म्यार खुट दबे दे.'
'जोस कुंछा महाराज.' खुशियल कोय.
ओडीयार में जै बेर राज लम्ब है गोई. खीरकि पोटई वील आपुण सिराण धर ली और खुषी राजक खुट दबूण
में लाग गोय. राज रात भर नि सीती भोय. झट वीक आख लागि गे. खुशियल देखो की राज से गो तो वील चट्ट राजा सिराणा तली बे खीर निकाली और खाण लाग गोय. कंटर वील त्यो्रछ करी बे राजा खुटान मांथ बे धर दि.

थ्वाड देर में राज कणी ध्यान आय की खुषी कें लात मारण छु. वील मारी लात और कोय, 'आब खा खुशिया खीर'.
राजकी लातल कंटर भ्योव घुरी गोय और खुषी जो काख पर बैठी बेर खीर खाणोछि, वील कोय,
'खाणयु महाराज तुमार प्रसादल.'

1 comment:

  1. बिष्ट ज्यु भल प्रयास छू कुमाऊनी में काथ लेखणक, स्थानीय भाषाओं की रचनाओं एक फ़ोरम छू पहाड़ी फ़ोरम जैक लिन्क तली दीनयूं:
    http://pahariforum.net
    पहाड़ी फ़ोरम में लै आप योगदान करा, पहाड़ी भाषाक प्रचारा का लीजी आप लोगों की बहुत आवश्यता छू।

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